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जनसंपर्क : बदलते आयाम

Price:   200 |  17 Sep 2019 12:05 PM GMT

जनसंपर्क : बदलते आयाम

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निरंतर सीखने योग्य हैं जनसंपर्क के बदलते आयाम

वर्तमान में जनसंपर्क कितना महत्वपूर्ण हो गया है अब हर कोई जानता है। सरकारें अपने काम को सही तरीके से लोगों तक न पहुंचा पाएं सत्ता परिवर्तन हो जाता है तो राजनैतिक दल, सामाजिक व सांस्कृतिक संगठन, उद्योग जगत, फिल्मी सितारे, खिलाड़ी से लेकर अलग अलग क्षेत्रों के पेशेवर बिना जनसंपर्क के अपने लक्ष्य को नहीं पा सकते हैं। प्रस्तुत पुस्तक जनसंपर्क विविध आयाम इस पूरे परिवर्तन को सिलसिलेवार रखती है। पुस्तक का प्रकाशन पब्लिक रिलेशन सोसायटी मध्यप्रदेश चैप्टर ने किया है जिसका पूरा देश में अपना एक विस्तृत नेटवर्क है। उसके सदस्य जनसंपर्क कला के विशेषज्ञ हैं और अनुभवों से वास्तविक और वर्तमान के अंतर पर गहरी जानकारी रखते हैं। पुस्तक के संपादक पुष्पेन्द्र पाल सिंह की सफलता यही रही है। उन्होंने इतने बड़े विषय को अपने संपादन से गागर में सागर की तरह इस पुस्तक में भर दिया है।

पुस्तक बताती है कि जनसंपर्क अधिकारियों व जनसंपर्ककर्मियों को किस कदर व्यवहार, ज्ञान, तकनीक के स्तर पर लगातार खुद को समृद्ध करना होता है। आपको लगातार बदलते समाज और उसकी अभिरुचियों का अध्ययन करना होता है। अपने संस्थान, संगठन के विषय में न केवल पूरी और सत्यपूर्ण जानकारी आपको अद्यतन होनी चाहिए बल्कि जनसंपर्क कर्मी अपने पक्ष की कमियों के बारे में भी लगातार सचेत रहे और उनके निवारण के लिए भी संगठन में आंतरिक जनसंपर्क करता रहे। रेल जैसे निरंतर गतिशील माध्यम में किस कदर जनसंपर्क की चुनौती हैं हमें भारतीय रेलवे में जनसंपर्क लेख को पढ़कर सरलता से मालूम होती हैं। लेख में उन महत्वपूर्ण मौकों का रोचक वर्णन है जब जनसंपर्ककर्मी की कार्यकुशलता पर न केवल रेलवे की प्रतिष्ठा निर्भर रहती है बल्कि उसकी सही या आंशिक गलत सूचनाएं कितना तीव्र प्रभाव लाखों लोगों पर डालती हैं। सार्वजनिक उपक्रमों और विभागों में जनसंपर्क के कार्य का विस्तार और जवाबदेही बेहतर ढंग से समझायी गयी है। फिल्मों और फिल्मी सितारे हम सबसे बहुत दूर होकर भी हमारी भावनाओं के करीब हैं। फिल्म और सिनेमा के क्षेत्र में जनसंपर्क का क्या इतिहास रहा है जानना बेहद रोचक रहा। लेखक अजय व्रह्मात्मज ने सिने दुनिया में कैसे निरंतर बदलाव देखे हैं जानना समझना रोचक है।

हर तरफ जब विज्ञान और तर्क की उपयोगिता निरंतर दिखती है तो जनसंपर्क कैसे अछूता रहता। आंकड़ों के जरिए जनसंपर्क कर्मी अपनी न केवल साख को बनाते हैं बल्कि वे अपने लक्षित वर्ग का विश्वास भी जीतने में सफल होते हैं। संपादक पुष्पेन्द्र पाल सिंह ने बेबाकी से लिखा भी है कि आज एक जनसंपर्क अधिकारी को डाटा साइंटिस्ट की तरह कार्य करना पड़ता है। उसकी विश्वसनीयता के लिए यह बेहद जरुरी है। तकनीक के युग में सोशल मीडिया पर डिजीटल मीडिया के क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रहे सरमन नगेले गहराई से प्रकाश डालते हैं। वेबसाइट, ब्लॉग, फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब से लेकर वॉट्सएप तक अब जनसंपर्क के हथियार हैं। ये सूचनाओं के तीव्रग्रामी माध्यम हैं। इनका प्रयोग अधिकाधिक हो मगर सावधानी उसी तेजी से रखी जाए ये बात पुस्तक में विशेष रुप से सामने लाती है। कम समय और कम खर्च में सूचनाओं के प्रसार पर लेखकों ने सधी हुई कलम चलाई है। जनसंपर्क के तमाम आयामों को हिन्दी के साथ अंग्रेजी भाषा में भी पिरोया गया है। युवा साथियों के लेख नवीनता के साथ कुछ नए दृष्टिकोण प्रकाश में लाते हैं जो जनसंपर्क कार्य में अति उपयोगी होंगे। कई आयामों और वृहद जानकारी वाली यह पुस्तक जनसंपर्क के निश्चित ही विविध आयाम पाठकों के सामने रखती है साथ ही जमीनी अनुभव से अपेक्षाकृत दूर जनसंपर्क शिक्षकों एवं नए विद्यार्थियों को महत्वपूर्ण ज्ञान से अवगत कराती है।


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