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मोबाइल टेक्नोलॉजी और समाज

Price:   300 |  23 March 2019 3:09 PM GMT

मोबाइल टेक्नोलॉजी और समाज

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 मोबाइल के गुण-दोष बताती पुुस्तक

आज हम टेक्नोलॉजी के युग में जी रहे हैं टेक्नोलॉजी ने हमारा जीवन आसान कर दिया हैं जल थल नभ तीनों महातत्वों पर हमने विजय प्राप्त कर ली है टेक्नोलॉजी के बल पर मानव ने दुनिया को ही नहीं अपितु ब्रह्मांड को भी अपनी मु_ी में कर लिया हैं लेकिन हम अपनों से दूर होते जा रहे हैं। अपनों से जितनी आत्मीयता और अपनत्व पहले था अब नहीं रहा।

मोबाइल आज हमारी जीवन शैली में इतना अधिक घुल-मिल गया है कि थोड़ी देर के लिए भी यदि आंखों से ओझल हो जाए तो हम बेचैन हो उठते हैं। संजीव कुमार गंगवार छोटी उम्र के बड़े लेखक हैं संवेदन शील हैं इसीलिए उन्हें एक पुस्तक लिखनी पड़ी मोबाइल टेक्नोलॉजी और समाज ताकि लोग मोबाइल का उपयोग सावधानी से करें। मोवाइल का नशा शराब के नशे जैसा ही हैं हमें इसका आदी नहीं होना है।

इस पुस्तक को लेखक ने चौबीस खण्ड़ों में विभक्त कर मोबाइल के संदर्भ में तार्किक दृष्टि सम्पन्न होकर प्रकाश डाला है हमारी संस्कृति विकास के उस मॉडल को स्वीकृत करती है जो पर्यावरण के साथ मित्रवत् व्यवहार करता है। लेखक के अनुसार आधुनिक संचार क्रांति ने भारतीय संस्कृति के मानवीय पक्षों को कमजोर किया है। इसका कारण संचार माध्यमों से लगातार हर पल पाश्चात्य संस्कृति का परोसा जाना हैं। वर्तमान में लोग अपना बहुमूल्य समय फेसबुक और वाट्सएप पर खर्च कर देते हैं। संवेदनात्मक वीडियों अपलोंड करके अधिक रूपए कमाने का धन्धा जोर पकड़ रहा हैं। इसलिए अब लोग वास्तविकता पर भी संदेह करने लगे हैं।

मोबाइल के लिये लगे टॉवर घातक रेडिय़ोएक्टिव पदार्थ एवं तरंगें प्रसारित करके लोगों को गंभीर बिमारियां दे रहे हैं। मोबाइल को कान से लगाकर बातें करते और सुनते हैं। उससे लोग बहरे हो रहे हैं। मोबाइल धारकों को सदैव मोबाइल की घंटी बजने का अहसास होता है। इस बीमारी को फोनोमेकिया कहते है। इसके मरीज लगातार बढ़ रहे हैं।

मुनाफा कमाने की होड़ में बहुराष्ट्रीय कंपनियां फ्री सिम का ऑफर देकर लगातार ग्राहकों को अपने जाल में फंसा रही हैं। बाजार में सिम नये-नये वर्जन के साथ मोबाइल आ रहे हैं। लोग तत्काल नये को खरीद लेते हैं और पुराने को घर में छोड़ देते हैं। इससे घरों और कबाडखानों में रेडियो एक्टिव तत्वों का जमाव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होता जा रहा हैं। अत: हमें इसका उपयोग संभलकर और सावधानी पूर्वक कम समय के लिए करना चाहिए।

लेखक ने परिश्रम पूर्वक मोबाइल से संबंधित आंकड़़े एकत्रित किए हैं। संजीव चंूकि विज्ञान के विद्यार्थी हैं इसलिए उनके कथनों में तार्किकता तथा तथ्यपरकता का भी उचित सामंजस्य दिखाई देता है।

पुस्तक की भाषा में सरलता सहजता एवं प्रवाह की बहुलता है। टेक्नीकल शब्दों के हिन्दी पर्यायो में बोधकता का समावेश है। पुस्तक निश्चित ही पठनीय है।

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