Home > Book Review > दशवतार: मिथकों को वैज्ञानिक आधार देता उपन्यास

दशवतार: मिथकों को वैज्ञानिक आधार देता उपन्यास

Price:   00 |  3 March 2019 4:40 PM GMT

दशवतार: मिथकों को वैज्ञानिक आधार देता उपन्यास

  • whatsapp
  • Telegram
  • koo

मूल रूप से संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों में उल्लेखित मिथकों में विज्ञान के रहस्य छिपे होने की बात कोई वैज्ञानिक या लेखक करता है तो उनका उपहास तो खूब उड़ाया जाता है, लेकिन इन रहस्यों की वैज्ञानिक ढंग से गांठें खोलने की कोशिश नहीं की जाती। इस परिप्रेक्ष्य में अब हिंदी में ‘दशावतार‘ शीर्षक से प्रसिद्ध लेखक व पत्रकार प्रमोद भार्गव का ऐसा अद्वितीय उपन्यास आया है, जो लोक में प्रचलित अनेक मिथकों का न केवल वैज्ञानिक ढंग से उत्तर देता है, बल्कि उत्तरों की तर्किक पुष्टि के लिए दुनियाभर में हो रहे नवीनतम वैज्ञानिक अनुसंधानों के उदाहरण भी प्रस्तुत करता है। अतएव लेखक का इस संदर्भ में विशद् अध्ययन न केवल चमत्कृत करता है, बल्कि दिए गए तथ्यों से सहमत होने को विवश भी करता है। इस दृष्टि से विष्णु के दशावतारों पर आत्मकथात्मक रूप में यह औपन्यासिक प्रस्तुति बेहद सारगर्भित है।

लेखक द्वारा ही लिखी उपन्यास की भूमिका बौद्धिक चेतना का एक ऐसा दस्तावेज है, जो हमारे पूर्वाग्रहों को उपन्यास पढऩे की शुरूआत से पहले ही झकझोर देता है। अभी तक हम जैव व मानव विकास यानी जीवोत्पत्ति के विज्ञान को डॉर्विन के नजरिए से ही देखते चले आ रहे हैं। अलबत्ता लेखक सनातन संस्कृति में विष्णु के जो दशावतार हैं, उनके माध्यम से डॉर्विन के सिद्धांत को एक विस्तृत फलक देते हुए एक कोशीय जीव से लेकर मनुष्य तक के अवतरण एवं कालक्रम को प्रस्तुत करता है। इस भौतिकवादी व्याख्या के अंतर्गत पहला अवतार मछली है। विज्ञान भी मानता है कि जीव-जगत में पहला जीवन-रूप जल में विकसित हुआ। दूसरा अवतार कछुआ है, जो जल और भूमि दोनों पर रहने में समर्थ हुआ। विज्ञान भी मानता है कि मछली के बाद जीव विकसित हुए जो जल और थल दोनों पर रहने में सक्षम हुए। तीसरा वराह हुआ, जो पानी के भीतर से धरती की ओर बढऩे का संकेत था। अर्थात पृथ्वी को जल से मुक्त करने का प्रतीक है। चौथा, नरसिंह है, जो जानवर से मनुष्य में संक्रमण का प्रतिबिंब है। पांचवां वामन अवतार है, जो लघु रूप में मानव जीवन का अवतरण है। छठा परशुराम हैं, जो संपूर्ण रूप में मनुष्य के विकसित हो जाने का रेखाकंन है। हाथ में फरसा लिए परशुराम मानव जीवन को व्यवस्थित रूप में बसाने के लिए वनों को काटकर घर बसाने की स्थिति को भी अभिव्यक्त करते हैं। सातवें अवतार राम हैं, जिनका प्रगटीकरण हाथों में धनुष-बाण लिए हुए है। धनुष-बाण इस बात का भी संकेत हैं कि इस समय तक मनुष्य मानव बस्तियों की सुरक्षा करने में सक्षम हो गया था। आठवें अवतार कंधे पर हल लिए हुए बलराम हैं। यह विकसित हो रही मानव सभ्यता के बीच कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को इंगित करता है। नवें अवतार में कृष्ण हैं, जो मनुश्य को कृषि के साथ दुग्ध उत्पादों से जोडऩे और आजीविका चलाने का घोतक है। कृष्ण ने महाभारत युद्ध के समय अर्जुन को जो गीता का उपदेश दिया, वह उनके दर्शनिक भाव की भी अभिव्यक्ति है। दसवां कल्कि हैं, जो भविष्य का अवतार है। इस उपन्यास की एक अन्य विलक्षण्ता यह है कि यह जीव के विकासक्रम के साथ-साथ संपूर्ण सृष्टि अर्थात ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और वह किस वैज्ञानिक ढंग से अस्तित्व में हैं, उनके कारण एवं कारकों की भी सार्थक प्रस्तुति है। इन कारणों और कारकों को भारतीय मनीषियों ने कैसे जाना-परखा इन्हें संस्कृत ग्रंथों में उल्लेखित श्लोकों को अर्थ-समेत प्रस्तुत करके किया गया है। इस नाते ऋषियों की वैज्ञानिक समझ परत-दर-परत पुष्ट होती चलती है। साफ है, ऋषियों ने गुरूत्वाकर्षण बल की महिमा को पहचान कर हजारों साल पहले व्याख्यातित भी कर दिया था। ब्रह्माण्ड के उद्भाव और उसकी विराटता के रहस्यों को हम अब जाकर उपकरणों के माध्यम से जानने की कोशिश कर रहे हैं, किंतु कृष्ण का विराट रूप इसे पहले ही दर्शा चुका है।

महाभारत से एक श्लोक लेकर लेखक एक कोशीय जीव से जीवन की उत्पत्ति के बारे में स्पष्ट करते हुए कहते हैं, ‘सृष्टि के आरंभ में जब वस्तु विशेष के नाम नहीं थे, चहुंओर अंधकार था, तब एक बहुत बड़ा अण्डा प्रकट हुआ। जो संपूर्ण जीवों का अविनाशी बीज था। इस दिव्य अण्डे या चमत्कारी बीज से चार प्रकार के प्राणियों का क्रमानुसार जन्म हुआ। इनमें पहले मत्स्यवंशी जलचर आए, फिर शलचरों से मण्डूकवंशी उभयचर आए। उभयचरों से धरा पर रेंगने वाले सरीसृप और नभचर आए और फिर थलचर आए।

ऐसा शायद साहित्य में पहली बार संभव हुआ है कि कई लंबे कालखंडों की मानव सभ्यता से जुड़े भूगोल, विज्ञान और उसकी इतिहास परंपरा को एक उपन्यास में एक जगह समेटा गया है।


Top